2011 में पहली बार जब ग्रेटर नोएडा के बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट पर फार्मूला वन (F1) कारों की आवाज़ गूंजी, तो लगा जैसे इंडिया भी अब ग्लोबल मोटरस्पोर्ट मैप पर आ गया।
2011, 2012 और 2013 — ये तीन साल रहे जब दुनिया की सबसे तेज रेसिंग कारें भारत आईं और यहां के फैंस ने इस अनुभव को जी-भर के जिया।
बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट को JP इंटरनेशनल स्पोर्ट्स लिमिटेड ने बनाया था। डिज़ाइन किया था हरमन टिलके ने, जो F1 ट्रैकों के सबसे जाने-माने डिज़ाइनर्स में से एक हैं। करीब 2000 करोड़ रुपये का बजट लगा, और इसका निर्माण इतना शानदार हुआ कि आज भी ये ट्रैक बेमिसाल हालत में है।
लेकिन फिर क्या हुआ?
2013 के बाद F1 इंडिया क्यों नहीं लौटा?
असल कहानी टैक्स, नियमों और कंफ्यूजन की है। 2012-13 में यूपी सरकार ने F1 को "स्पोर्ट्स" से हटा कर "एंटरटेनमेंट इवेंट" की श्रेणी में डाल दिया। अब इसका मतलब था — ज्यादा टैक्स, भारी कस्टम ड्यूटी और रेड टेप (यानि बहुत ज्यादा पेपरवर्क)।
हर रेस से पहले F1 टीमें जब अपना कार्गो इंडिया भेजतीं — जिसमें इंजिन, टायर्स, सेफ्टी गियर्स और कई इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल होते थे — तो वो दिल्ली एयरपोर्ट पर अटक जाता। वहां का कस्टम डिपार्टमेंट F1 से इनकम टैक्स डिटेल्स और रेवेन्यू ब्रेकडाउन मांगता। यहां तक कि खुद FIA (F1 का गवर्निंग बॉडी) को टैक्स नोटिस भेजे जाने लगे।
F1 ने जब ये सब देखा तो 2014 से उन्होंने इंडिया को अपने कैलेंडर से ड्रॉप कर दिया।
कहने को इंडिया में F1 का फैन बेस काफी है। लेकिन जब सिस्टम ही साथ ना दे तो खेल कब तक टिकेगा?
अगर सरकार चाहती तो ये ट्रैक इंडिया का मोटरस्पोर्ट हब बन सकता था — मोटोजीपी, इंटरनेशनल ड्रैग रेसिंग, या यहां तक कि F1 E-सीरीज़ भी हो सकती थी। लेकिन हमने खुद से ही इस मौके को गंवा दिया।
आज भी ये ट्रैक अपनी पूरी शान में खड़ा है, बस कारों की गरज और फैंस की तालियों की आवाज़ नहीं आती।
🧠 आपसे सवाल:
क्या आपको लगता है कि भारत में F1 फिर से वापसी कर सकता है?
क्या सरकार को मोटरस्पोर्ट्स को और सीरियसली लेना चाहिए?
✍️ लेखक: यशवंत सिंह और निशु सिंह
हम दोनों LurnSkill ब्लॉग के लेखक और संस्थापक हैं। हमारा मकसद है कि टेक्नोलॉजी, जनरल नॉलेज और डिजिटल स्किल्स जैसी ज़रूरी जानकारी को आसान और देसी भाषा में हर उस इंसान तक पहुँचाया जाए जो कुछ नया सीखना चाहता है। हम चाहते हैं कि सीखना भारी न लगे — बल्कि मजेदार और जानकारी से भरपूर हो।